भारतीय करेंसी नोटों का इतिहास: शुरुआत से लेकर वर्तमान तक के प्रमुख बदलाव। History of Indian Currency

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History of Indian Currency: भारत की करेंसी नोटों का इतिहास एक रोचक और विविधतापूर्ण यात्रा है। यह यात्रा प्राचीन काल से लेकर आधुनिक डिजिटल युग तक फैली हुई है। भारतीय मुद्रा का विकास देश के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों का प्रतिबिंब है। यह लेख भारतीय करेंसी नोटों के विकास की कहानी बताता है, जो सिक्कों से शुरू होकर आधुनिक बैंकनोटों तक पहुंची है।

इस लेख में हम भारतीय मुद्रा के विभिन्न चरणों का अध्ययन करेंगे। हम देखेंगे कि कैसे मुगल काल में रुपया अस्तित्व में आया, ब्रिटिश शासन के दौरान पेपर करेंसी की शुरुआत हुई, और स्वतंत्रता के बाद भारतीय रिज़र्व बैंक ने मुद्रा प्रबंधन की जिम्मेदारी संभाली। हम यह भी जानेंगे कि कैसे आधुनिक समय में डिजिटलीकरण और डिमोनेटाइजेशन जैसे कदमों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है।

भारतीय करेंसी का इतिहास (History of Indian Currency)

भारतीय करेंसी का इतिहास हजारों साल पुराना है। यह एक ऐसी यात्रा है जो प्राचीन व्यापार प्रणालियों से शुरू होकर आधुनिक डिजिटल लेनदेन तक पहुंची है। आइए इस यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ावों पर एक नज़र डालें:

समय कालमहत्वपूर्ण घटनाएँ
प्राचीन कालसिक्कों का प्रचलन, पुराण और कार्षापण का उपयोग
मुगल कालरुपया, मोहर और दाम का प्रचलन
ब्रिटिश कालपेपर करेंसी की शुरुआत, प्रेसिडेंसी बैंकों की स्थापना
1935भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना
1947 के बादस्वतंत्र भारत की नई करेंसी का प्रचलन
1996महात्मा गांधी सीरीज़ की शुरुआत
2016विमुद्रीकरण (Demonetization)
वर्तमानडिजिटल भुगतान का बढ़ता प्रचलन

प्राचीन भारत में मुद्रा (Currency in Ancient India)

प्राचीन भारत में व्यापार और लेनदेन के लिए विभिन्न प्रकार के सिक्कों का उपयोग किया जाता था। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में, महाजनपदों (प्राचीन भारत के गणराज्य) द्वारा पहले भारतीय सिक्के जारी किए गए थे। इन्हें पुराण, कार्षापण या पण कहा जाता था।

  • पुराण: ये चांदी के सिक्के थे जो व्यापार में प्रचलित थे।
  • कार्षापण: तांबे के बने ये सिक्के दैनिक लेनदेन में उपयोग किए जाते थे।
  • पण: यह एक सामान्य शब्द था जो विभिन्न प्रकार के सिक्कों को संदर्भित करता था।

इन सिक्कों पर विभिन्न प्रतीक और चिह्न अंकित होते थे, जो उनके मूल्य और जारीकर्ता को दर्शाते थे।

मुगल काल में मुद्रा व्यवस्था (Monetary System in Mughal Era)

मुगल शासकों ने भारतीय मौद्रिक प्रणाली में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने पूरे साम्राज्य में सिक्का प्रणाली में एकरूपता और समेकन लाया। 1540 से 1545 ईस्वी के बीच, अफगान शासक शेर शाह सूरी ने दिल्ली पर शासन किया। उन्होंने त्रि-धातु सिक्का प्रणाली की शुरुआत की:

  1. रुपया: 178 ग्रेन वजन का चांदी का सिक्का
  2. मोहर: 169 ग्रेन वजन का सोने का सिक्का
  3. दाम: तांबे का सिक्का

शेर शाह सूरी द्वारा शुरू किया गया चांदी का सिक्का ‘रुपया’ 20वीं शताब्दी की शुरुआत तक प्रचलन में रहा। यह रुपया आधुनिक भारतीय रुपये का अग्रदूत बना।

ब्रिटिश काल में पेपर करेंसी (Paper Currency in British Era)

18वीं शताब्दी के अंत में भारत में आधुनिक पेपर करेंसी की शुरुआत हुई। इस दौरान निजी बैंकों और अर्ध-सरकारी बैंकों (बैंक ऑफ बंगाल, बैंक ऑफ बॉम्बे और बैंक ऑफ मद्रास) द्वारा नोट जारी किए जाते थे।

कुछ प्रारंभिक बैंक नोट जारी करने वाले संस्थान थे:

  • बैंक ऑफ हिंदुस्तान (1770-1832)
  • जनरल बैंक इन बंगाल एंड बहार (1773-75, वारेन हेस्टिंग्स द्वारा स्थापित)
  • बंगाल बैंक (1784-91)

1861 में पेपर करेंसी एक्ट पारित किया गया। इस अधिनियम ने भारत सरकार को नोट जारी करने का एकाधिकार दे दिया, जिससे निजी और प्रेसिडेंसी बैंकों द्वारा नोट जारी करने का युग समाप्त हो गया1

स्वतंत्रता के बाद भारतीय मुद्रा (Indian Currency Post-Independence)

1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारत ने अपनी मुद्रा प्रणाली में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए:

  1. 1949: स्वतंत्र भारत की सरकार ने एक रुपये के नोट के डिजाइन में बदलाव किया। राजा के चित्र को हटाकर अशोक स्तंभ के सिंह मुद्रा चिह्न को शामिल किया गया।
  2. 1950 के दशक: हिंदी भाषा को नए करेंसी नोटों पर प्रमुखता से दर्शाया गया। ‘रुपया’ के बहुवचन रूप को लेकर चल रही बहस का समाधान ‘रुपये’ के पक्ष में किया गया।
  3. 1957: रुपये को 100 पैसों में विभाजित किया गया। इसे ‘नया पैसा’ कहा जाता था।
  4. 1964: ‘नया’ शब्द को नाम से हटा दिया गया।
  5. 1969: भारतीय रिज़र्व बैंक ने पहली बार महात्मा गांधी के चित्र वाले नोट छापे। 2 रुपये और उससे अधिक मूल्यवर्ग के नोटों पर गांधी जी का चित्र और पृष्ठभूमि में सेवाग्राम आश्रम का चित्र था।

महात्मा गांधी सीरीज़ (Mahatma Gandhi Series)

1996 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने ‘महात्मा गांधी सीरीज़’ के बैंकनोट जारी किए। यह सीरीज़ भारतीय मुद्रा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

इस सीरीज़ की विशेषताएँ:

  • आधुनिक सुरक्षा विशेषताएँ: वॉटरमार्क, विंडोड सुरक्षा धागा, छिपी हुई छवि और इंटैग्लियो मुद्रण।
  • गांधीवादी मूल्यों का प्रतिनिधित्व: नोटों पर महात्मा गांधी का चित्र प्रमुखता से दर्शाया गया।
  • भारतीय संस्कृति का प्रदर्शन: नोटों के पीछे की तरफ विभिन्न ऐतिहासिक स्मारकों और सांस्कृतिक प्रतीकों को दर्शाया गया।

आधुनिक युग में भारतीय मुद्रा (Indian Currency in Modern Era)

21वीं सदी में भारतीय मुद्रा ने कई महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे:

  1. 2010: नया रुपये का प्रतीक ‘₹’ आधिकारिक तौर पर अपनाया गया।
  2. 2016: विमुद्रीकरण (Demonetization) – 500 और 1000 रुपये के नोट बंद कर दिए गए और नए 500 और 2000 रुपये के नोट जारी किए गए।
  3. डिजिटल भुगतान का उदय: UPI, मोबाइल वॉलेट और डिजिटल बैंकिंग का प्रचलन बढ़ा।
  4. नए डिजाइन और सुरक्षा विशेषताएँ: नए नोटों में उन्नत सुरक्षा विशेषताएँ जोड़ी गईं।

भारतीय मुद्रा का भविष्य (Future of Indian Currency)

भारतीय मुद्रा का भविष्य तकनीकी नवाचारों और डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है:

  • डिजिटल रुपया: भारतीय रिज़र्व बैंक डिजिटल रुपये की संभावनाओं का अध्ययन कर रहा है।
  • कैशलेस अर्थव्यवस्था: डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए सरकारी प्रयास जारी हैं।
  • बायोमेट्रिक सुरक्षा: भविष्य में नोटों में बायोमेट्रिक सुरक्षा विशेषताएँ शामिल की जा सकती हैं।

Disclaimer

यह लेख भारतीय मुद्रा के इतिहास और विकास पर एक सामान्य जानकारी प्रदान करता है। हालांकि, मुद्रा नीतियाँ और प्रचलन समय-समय पर बदल सकते हैं। किसी भी आर्थिक निर्णय लेने से पहले हमेशा नवीनतम सरकारी दिशानिर्देशों और भारतीय रिज़र्व बैंक की आधिकारिक वेबसाइट से जानकारी प्राप्त करें। यह लेख केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है और इसे वित्तीय सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।

Author

  • Kajal Kumari

    Kajal Kumari is an experienced writer with over 7 years of expertise in creating engaging and informative content. With a strong educational background in literature and communication.

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