सोशल मीडिया और कुछ समाचारों में यह खबर तेजी से वायरल हो रही है कि सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों के संपत्ति अधिकार खत्म कर दिए हैं। लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है।
2020 में विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि बेटियों को जन्म से ही पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार मिलते हैं। हालांकि, अप्रैल 2025 में एक नए मामले में कोर्ट ने कुछ विशेष परिस्थितियों को चिन्हित किया है, जहां बेटियों को संपत्ति से वंचित किया जा सकता है।
इस लेख में हम सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले की पूरी जानकारी, कानूनी प्रावधानों, और बेटियों के अधिकारों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। साथ ही, यह भी समझेंगे कि “अब बेटियों को हिस्सा नहीं मिलेगा” वाली खबर कितनी सच है और कितनी अफवाह।
Supreme Court Verdict
पैरामीटर | विवरण |
मामला | अप्रैल 2025 का ताजा फैसला (पिता की संपत्ति में बेटी का दावा) |
मुख्य बिंदु | पिता से संबंध विच्छेद करने वाली बेटियों को अधिकार नहीं |
संपत्ति का प्रकार | स्वअर्जित संपत्ति (पैतृक संपत्ति नहीं) |
कानूनी आधार | हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 और 2005 का संशोधन |
अपवाद | पैतृक संपत्ति में अधिकार बरकरार |
प्रभावी तिथि | फैसला तुरंत प्रभावी |
न्यायाधीश | जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस संजय किशन कौल |
विवाद का कारण | तलाक के बाद बेटी द्वारा पिता से संबंध तोड़ना |
किन बेटियों को नहीं मिलेगा संपत्ति में अधिकार?
- पिता से संबंध विच्छेद: अगर बेटी ने पिता के साथ किसी भी प्रकार का रिश्ता नहीं रखा है और कानूनी तौर पर संबंध तोड़ लिए हैं।
- पालन-पोषण का दावा: अगर बेटी ने पिता द्वारा पालन-पोषण या शिक्षा का खर्च नहीं लिया हो, और उसकी परवरिश मां/अन्य संरक्षक ने की हो।
- संपत्ति का प्रकार: यह फैसला स्वअर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property) पर लागू होता है, पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) पर नहीं।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम: बेटियों के अधिकारों का इतिहास
- 1956 का कानून: बेटियों को पैतृक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं था।
- 2005 का संशोधन: बेटियों को जन्म से ही बेटों के बराबर अधिकार दिया गया।
- 2020 का फैसला: विनीता शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2005 का संशोधन रेट्रोस्पेक्टिव है, यानी 1956 से पहले जन्मी बेटियों को भी अधिकार मिलेंगे।
- 2025 का फैसला: स्वअर्जित संपत्ति में अधिकार के लिए पिता-बेटी के रिश्ते को आधार बनाया गया।
पैतृक संपत्ति vs स्वअर्जित संपत्ति: क्या अंतर है?
पैरामीटर | पैतृक संपत्ति | स्वअर्जित संपत्ति |
परिभाषा | पिता/पूर्वजों से विरासत में मिली | पिता द्वारा स्वयं अर्जित की गई |
बेटी का अधिकार | जन्म से ही बेटे के बराबर | पिता की इच्छा/वसीयत पर निर्भर |
कानूनी प्रावधान | हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 2005 लागू | भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 लागू |
विवाद का कारण | बेटियों को अधिकार न देने पर | पिता द्वारा वसीयत न बनाने पर |
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रभाव
- सकारात्मक पक्ष:
- पिता के अधिकारों की सुरक्षा: अगर बेटी ने पिता से रिश्ता तोड़ा है, तो पिता उसे संपत्ति से वंचित कर सकते हैं।
- न्यायिक स्पष्टता: पिता-बेटी के कानूनी रिश्ते को संपत्ति अधिकार से जोड़ा गया।
- नकारात्मक पक्ष:
- महिला अधिकारों पर चोट: कुछ मामलों में बेटियों को अन्याय हो सकता है।
- तलाकशुदा महिलाओं को नुकसान: तलाक के बाद पिता से रिश्ता तोड़ने वाली बेटियों को हानि।
संपत्ति अधिकारों के लिए जरूरी दस्तावेज
- जन्म प्रमाणपत्र: बेटी और पिता के रिश्ते का सबूत।
- संपत्ति के कागजात: रजिस्ट्री, विलखत, या पैतृक संपत्ति का दस्तावेज।
- पिता की मृत्यु प्रमाणपत्र: अगर संपत्ति विरासत में मिली है।
- वसीयतनामा: अगर पिता ने स्वअर्जित संपत्ति का बंटवारा किया है।
कैसे करें संपत्ति में दावा?
- चरण 1: वकील से सलाह लें और संपत्ति के कागजात इकट्ठा करें।
- चरण 2: पारिवारिक समझौता या मध्यस्थता के जरिए हल निकालें।
- चरण 3: सिविल कोर्ट में केस दर्ज करें, अगर समझौता न हो।
- चरण 4: हाईकोर्ट/सुप्रीम कोर्ट में केस कैसे दर्ज करें
- चरण 5: फैसले का पालन करें और संपत्ति का कानूनी बंटवारा सुनिश्चित करें।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कुछ विशेष परिस्थितियों में ही लागू होता है और बेटियों के संपत्ति अधिकारों को समाप्त नहीं करता।
अगर बेटी ने पिता से संबंध बनाए रखा है या पैतृक संपत्ति में दावा कर रही है, तो उसे पूरा कानूनी अधिकार मिलेगा। हालांकि, स्वअर्जित संपत्ति के मामले में पिता की वसीयत या रिश्ते की प्रकृति महत्वपूर्ण होगी।
Disclaimer: यह लेख सुप्रीम कोर्ट के फैसलों, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, और कानूनी विशेषज्ञों की राय पर आधारित है। “बेटियों को अधिकार नहीं मिलेगा” वाली खबर आंशिक रूप से सही है, लेकिन यह सभी मामलों पर लागू नहीं होती।
किसी भी कानूनी कार्रवाई से पहले वकील से सलाह अवश्य लें। यह लेख सामान्य जानकारी के उद्देश्य से है और कानूनी सलाह नहीं है।